"अपनी आंखों के समंदर में उतर जाने दे
तेरी मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचती हूँ कि कहूँ तुझसे...........
मगर जाने दे "
तेरी मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचती हूँ कि कहूँ तुझसे...........
मगर जाने दे "
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