Monday, October 7, 2013

मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है ,

 मुल्क तेरी बर्बादी के आसार नज़र आते है ,
चोरों के संग पहरेदार नज़र आते है
ये अंधेरा कैसे मिटे , तू ही बता ऐ आसमाँ ,
रोशनी के दुश्मन चौकीदार नज़र आते है
हर गली में, हर सड़क पे ,मौन पड़ी है ज़िंदगी ,

हर जगह मरघट से हालात नज़र आते है
सुनता है आज कौन द्रौपदी की चीख़ को ,
हर जगह दुस्सासन सिपहसालार नज़र आते है
सत्ता से समझौता करके बिक गयी है लेखनी ,
ख़बरों को सिर्फ अब बाज़ार नज़र आते है
सच का साथ देना भी बन गया है जुर्म अब ,
सच्चे ही आज गुनाहगार नज़र आते है
मुल्क की हिफाज़त सौंपी है जिनके हाथों मे ,
वे ही हुकुमशाह आज गद्दार नज़र आते है
खंड खंड मे खंडित भारत रो रहा है ज़ोरों से ,
हर जाति , हर धर्म के, ठेकेदार नज़र आते है

2 comments:

Unknown said...

ये मेरी कविता है जो मेरे काव्य संग्रह चिंगारी मे प्रकाशित हो चुकी है
डाॅ शैलेन्द्र मिश्रा

Rahunesh said...

डाॅ शैलेन्द्र मिश्रा जी,
मैं आपसे माफ़ी चाहता हूँ, आपकी की कविता को मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित करने के लिए| आप चाहे तो मैं आपकी कविता को मेरे ब्लॉग से हटा सकता हूँ | मुझे आपके जबाब का इंतजार रहेगा|
धन्यवाद||