मेरा कलम मेरे ज़ज्बात मांगने वाले...
कुछ और मांग मेरा हाथ मांगने वाले...
तमाम गाँव तेरे भोलेपन पे हसता है,
धुएं के अब्र से बरसात मांगने वाले...
ये लोग कैसे अचानक अमीर बन बैठे,
ये सब थे भीक मेरे साथ मांगने वाले...
कलेजा चाहिए जीने को ऐसे जंगल में,
कुछ और मांग मेरी रात मांगने वाले...
कभी बसंत में प्यासी जड़ों की चीख भी सुन,
लुटे शज़र से हरे पात मांगने वाले...
कुछ और मांग मेरा हाथ मांगने वाले...
तमाम गाँव तेरे भोलेपन पे हसता है,
धुएं के अब्र से बरसात मांगने वाले...
ये लोग कैसे अचानक अमीर बन बैठे,
ये सब थे भीक मेरे साथ मांगने वाले...
कलेजा चाहिए जीने को ऐसे जंगल में,
कुछ और मांग मेरी रात मांगने वाले...
कभी बसंत में प्यासी जड़ों की चीख भी सुन,
लुटे शज़र से हरे पात मांगने वाले...
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