कभी मेहरबान सा लगा , तो कभी अनजान सा लगा.. वो शख्स कभी वहम, तो कभी गुमान सा लगा..!!
वो दर्द होकर भी मेरे ज़हन को कुछ आराम सा लगा.. दिल मे नफरत रखकर भी, मुझे नादान सा लगा..!!
बिछड़गया वो मुझसे उस रातकैसे ये ना पूछो.. जो कल तक मुझेमेरी पहचान सा लगा. !!
जी रहा था वो बेगैरत बड़े शौक सेहर रोज़इस तरह से .. वो शख्स मुझे जो कभी इंसान सा लगा..!!
वो दर्द होकर भी मेरे ज़हन को कुछ आराम सा लगा.. दिल मे नफरत रखकर भी, मुझे नादान सा लगा..!!
बिछड़गया वो मुझसे उस रातकैसे ये ना पूछो.. जो कल तक मुझेमेरी पहचान सा लगा. !!
जी रहा था वो बेगैरत बड़े शौक सेहर रोज़इस तरह से .. वो शख्स मुझे जो कभी इंसान सा लगा..!!
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