Saturday, March 14, 2015

"मा" तू मुझे बहुत याद आती है.....

हर लम्हा खुबुसरत ल्गता था, जब तेरा हाथ थामकर चलता था
एक गश में ही पेट भर जाता था,जब तेरे हाथ से नीवाला ख़ाता था
धूप में भी चाओं का सा मज़ा आता था, जब आचल तेरा मेरे सर पर होता था
पालक झपकते ही नींद आ जाती थी, जब लोरी तेरी सुनता था
मुस्कान चेहरे से मेरे ना जाती थी, जब हंसता हुआ तुम्हे देखता था
तुमसे दूर भी रहना पड़ा मुझे पर हर बार घर आने को तरसता था
पर आज का मंज़र बदल गया तेरे बिना उसी घर में रहना पड़ गया
अब हर लम्हा मुश्किल से कटता है क्यूंकी मेरा हाथ तेरे साथ को तरसता है
अब भूख भी नही लगती मुझको हर नीवाला मुश्किल से निगलता है
अब तो छाव भी धूप की तरह जलती है क्यूंकी तेरे आँचल की छाव मेरे सर पर नही होती है
अब तो रात रात भर जागता हूँ क्यूंकी तेरी आवाज़ में लोरी नही सुन पता हूँ
तेरी हर बात याद कर आखें नॅम हो जाती है अब तो तेरी तस्वीर भी रूलाती है
"मा" तू मुझे बहुत याद आती है..."मा" तू मुझे बहुत याद आती है...
घर की याद आती है मुझे.... घर की याद आती है मुझे !!!

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