Wednesday, December 9, 2015

मैं शायरी करना सीख गया

दर्द दिए कुछ ज़माने ने हर लम्हा कुछ यूँ बीत गया
इसी तरह हुई शुरआत कुछ मैं शायरी करना सीख गया
बढ़ा कुछ आगे तब झूठे दोस्तों में समय बीत गया
कुछ ऐसे ही हुई शुरुआत यारों मैं शायरी करना सीख गया
फिर कुछ झूठे रिश्तो में मेरे भोलेपन को वो जीत गया
बढ़ा दर्द कुछ इस कदर कि मैं शायरी करना सीख गया
रूह मेरी गम में डूबी थी अब हर लम्हा हंसी का बीत गया
इस तरह मैं दर्द-ए-दिल शायरी करना सीख गया
कुछ नामुराद दिल भी ऐसी जगह लगा जो मेरे दिल को भी साथ ले गयी
बस इस टूटे हुए बेख़ौफ़ शायर को कुछ प्यार का दर्द दे गयी
आज जब सभी हमें शायर शायर कहते हैं
वो कहते हैं कि हम और हमारी शायरी उनके दिल में रहते हैं
अरे हम तो बस शायर हैं महखानों में रहते हैं
आलम कुछ ऐसा है की कलम से कागज़ पर दर्द बयान कर दें तो लोग शायर श्यार कहते हैं
हम तो आज भी एक रूह हैं बस
जो उनके दिल में रहते हैं…
उनके दिल में रहते हैं….

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