न ढल तू ऐ दिलक़शा ,
कुछ तो लिहाज़ कर .
ये शाम जवान तुझ से है ,
कुछ तो लिहाज़ कर .
ये रंगतें ये खुशबुएँ ,
तेरे होने से ही है फ़क़त ,
महफ़िल ये समा तुझ से है ,
कुछ तो लिहाज़ कर
ये तेरी ही बज़्म है ,
पहले कुछ न था कभी यहाँ ,
हर मुजजसमा अब तुझ से है ,
कुछ तो लिहाज़ कर .
न ढल तू ऐ दिलक़शा ,
कुछ तो लिहाज़ कर
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