तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में ...................
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम कर लूंगा
सफ़र इक उम्र का पल में तमाम कर लूंगा
नज़र मिलाई तो पूछूँगा इश्क़ का अंजाम
नज़र झुकाई तो खाली सलाम कर लूंगा
जहाँ-ए-दिल पे हुक़ूमत तुम्हें मुबारक हो
रही शिकस्त तो मैं अपने नाम कर लूंगा
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