उन बेपरवाह रातों में..................
क्या ख़ूब नशा था उन बेपरवाह रातों में,
घुली थी मानो सौंधी सी ख़ुश्बू उन अनगिनत बातों में !
पालतू सा था वक़्त, मेहरबाँ सी क़िस्मत,
क्या मद्धम सा था जादू उन मुलाक़ातों में !
लौटें हैं आज मुद्दतों बाद फिर तेरी' गलियों से,
सिवाए तेरे कुछ भी तो नहीं बदला !
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