Friday, May 20, 2016

उन बेपरवाह रातों में..................

क्या ख़ूब नशा था उन बेपरवाह रातों में,
घुली थी मानो सौंधी सी ख़ुश्बू उन अनगिनत बातों में !

पालतू सा था वक़्त, मेहरबाँ सी क़िस्मत,
क्या मद्धम सा था जादू उन मुलाक़ातों में !

लौटें हैं आज मुद्दतों बाद फिर तेरी' गलियों से,

सिवाए तेरे कुछ भी तो नहीं बदला !



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