Tuesday, August 7, 2018

टूट कर बिखर ही जाते हैं...


रिश्ते काँच सरीख़े हैं, टूट कर बिखर ही जाते हैं...

समेटने की ज़हमत कौन करे, लोग काँच ही नया ले आते हैं...!

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