Tuesday, November 13, 2018

कितना और सताओगे......


मुझको इश्क सिखाओगे
सूरज में आग लगाओगे।

कर श्रृंगार जो रूठे तुम
कितना और सताओगे।

भर आँखों में समंदर
क्यूँ दरिया में नहाओगे।

खुद को ही कह बैठे हो
और किसको बताओगे।

सारा शहर डूबेगा गर
इक कतरा टपकाओगे।





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