Dil Ki Baat
Wednesday, January 13, 2021
तलब और कुछ न था
अपने अलावा ग़ौरतलब और कुछ न था,
रिश्तों के टूटने का सबब और कुछ न था.
बस इक तुम्हारे नाम की उभरी हुई लकीर,
मेरी हथेलियों को तलब और कुछ न था.
❣️
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