Monday, February 23, 2015

जिन्दगी की कश्मकश मे क्यु ना थोड़ा जिया जाए

जिन्दगी की कश्मकश मे क्यु ना थोड़ा जिया जाए
दुख की इन कम्बलो को, मिलके आज सीया जाए।
टुटे हुए रिश्तो पे क्यु ना थोड़ा रोया जाए
प्यार का एक बिज उनमे, मिल के आज बोया जाए।
बचपन की उन यादों मे क्यु ना थोड़ा खोया जाए
आखोसे छलकते आसुओं को, बारिश मे आज भिगोया जाए।
अपनेपन के जाल में क्यु ना दुश्मनो को फसाया जाए
पुरानी नफरते भुलाकर, उनको भी आज हसाया जाए।
पचतावे की आग मे क्यु ना थोड़ा नहाया जाए
अहंकार और घमंड को, मिलके आज बहाया जाए।
एक कतरा जिंदगी का क्यु ना थोड़ा पिया जाए
जिंदगी की कश्मकश मे, मीलके आज जिया जाए।

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