कोई मुझसे रहता खफा आज कल
जिये या मरे रहती जफा आज कल
तस्सवुर में तेरे हो जाती सहर
आँखोसे निंद रहती जुदा आज कल
समझाये भला अब कितनी दफा ए दिल
नहीं करता यहाँ कोइ वफा आज कल
मसरुफीयत जिंदगी है यहा सब की यारो
नही बँधता महफील-ए-समाँ आज कल
ना करो बात इश्क मोहब्बत की साहील
दिल टुटता बनी ये एसी जफा आज कल
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