Wednesday, September 5, 2018

क्या अब भी मैं उड़ूँ नहीं......


जिस रिश्ते में जुनूँ नहीं
ये समझो उसमें सुकूँ नहीं।

मंजिल की ऐसी क्या जल्दी
इक मंजर रोके , रुकूँ नहीं।

मुआमला ये सजदे का है
भला फ़िर क्यूँ झुकूँ नहीं।

मिट्टी हैं और मिट्टी में सब
छोड़ो क्या और क्यूँ नहीं।

चलते चलते थक गया हूँ
क्या अब भी मैं उड़ूँ नहीं।


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