कही एक मासूम नाजुक सी लडकी
बहुत खुबसुरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसाकर
सरहाने से तकिये गिराती तो होगी
वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साझ सीने की खामोशियों में
मेरी याद से झनझनाते तो होंगे
वो बेसख्ता धीमें धीमें सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियाँ कंपकपाती तो होगी
कलम हाथ से छुट जाता तो होगा
उमंगे कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दातों में उंगली दबाती तो होगी
जुबाँ से कभी अगर उफ् निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पाँव पडते तो होंगे
जमीं पर दुपट्टा लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी
बहुत खुबसुरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसाकर
सरहाने से तकिये गिराती तो होगी
वही ख्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साझ सीने की खामोशियों में
मेरी याद से झनझनाते तो होंगे
वो बेसख्ता धीमें धीमें सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगी
चलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियाँ कंपकपाती तो होगी
कलम हाथ से छुट जाता तो होगा
उमंगे कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दातों में उंगली दबाती तो होगी
जुबाँ से कभी अगर उफ् निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पाँव पडते तो होंगे
जमीं पर दुपट्टा लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी