Monday, August 29, 2016
एक महिला ने .....
वैक्यूम क्लीनर बेचने वाले सेल्समैन ने दरवाजा खटखटाया🚪
एक महिला ने दरवाजा खोला पर इससे पहले कि मुहँ खोलती...
सेल्समैन तेजी से घर में घुसा और *गोबर* का थैला घर के कारपेट पर खाली कर दिया।
सेल्समैन-"मैडम,
हमारी कम्पनी ने सबसे शानदार वैक्यूम क्लीनर बनाया है।
अगर मैं अपने शक्तिशाली वैक्यूम क्लीनर से अगले 3 मिनट में इस गोबर को साफ नहीं कर पाया तो मैं इसे खुद *खा* जाऊँगा।"
महिला-" क्या तुम इसके साथ चिली साँस लेना पसन्द करोगे?"
सेल्समैन-"क्यूँ मैडम ??"
महिला-"क्योंकि घर में *बिजली* नहीं है!!"
😳😳😳😳😳😳😳😳
*मोरल:किसी भी प्रोजेक्ट पर कार्य आरम्भ करने से पहले और कमिटमेन्ट करने से पहले पता कर लेना चाहिए कही आप राजस्थान में तो नही है*
😜😜😛😂
2 भिखारी बैठे थे... 😰
अमेरिका के एक शहर में 2 भिखारी बैठे थे...
😰
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एक के हाथ में ॐ का चिन्ह था और दूसरे के हाथ में क्रिसचन क्रॉस था...
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लोग वहां से निकलते थे और सब ॐ वाले भिखारी को गुस्से से देखकर 😳
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क्रॉस पकड़े हुए भिखारी को डॉलर की नोट देकर आगे निकल जाते थे... 😒
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कुछ घंटों बाद वहां से एक चर्च के फादर निकले और उन्होंने यह देखकर ॐ वाले भिखारी से बोला"
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भाई ये क्रिस्चियन देश है, यहाँ कोई तुम हिन्दू को भीख नहीं देगा... 😵
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दअरसल ये लोग यहाँ तुम्हे जलाने के लिए क्रॉस वाले भिखारी को ज्यादा पैसा देते जा रहे हैं... 😂
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ॐ वाले भिखारी ने क्रॉस वाले भिखारी के सामने देखा और गुजराती में बोला -
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जिग्नेश भाई.... 😉 बोलो मनसुख भाई....
😚
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अब ये हमें सिखाएगा धंदा करना...??
Sunday, August 28, 2016
दिन दहाड़े इंसानियत का कत्ल....
#हैरी_ठाकुर।।।
"आज मुझे पता चल गया पापा, कि सब झूठ कहते है",
एक राेती हुई बेटी ने, अपनी मरी हुई माँ काे काँधे पर ले जाते अपने पिता से कहा। बाप की साँसे तेज थी, हाेती भी क्यू ना। एक आेर ताे जनम जनम साथ निभाने वाली जीवन साथी उसे टी वी की बिमारी के चलते छाेड कर जा चुकी थी, उसकी यादे बार - बार आँखाें के सामने आ कर उसकी अाँखाे में आँसुओं का सैलाब जाे ला रही थी, ताे वही दूसरी आेर गरीबी की मार से कमजोर हुआ शरीर था जाे चलते चलते थकान से जवाब दे रहा था।
तेज साँसें लेते, एक हाथ से काँधे पर पत्नी के शव काे पकड़ कर एक हाथ से आसुआें काे पाैंछते बाप ने अपनी बेटी से बड़ी हिम्मत कर पूछा, "क्या गलत कहते है सब बेटी?????
राेती हुई बेटी पिता के दर्द काे महसूस कर बाेली "पापा मैं मदद करूँ आपकी??? बेटी के यह बाेल सुन बाप राे पड़ा आैर बाेला "नही बेटी ये मेरी पत्नी है इसकी ताे मैं अंत समय तक जिम्मेदारी उठा सकता हूँ आैर उठाऊगाँ, ये मेरे भराेसे अपना घर ससांर छाेड कर आई थी, इसलिए अंत समय तक ये मेरी जिम्मेदारी है, तू यह बता क्या गलत कहते है सब", पिता की यह बात सुन राेती हुई बेटी ने कहा "यही पापा के पैसा बड़ी चीज है पर इंसानियत से बड़ा नही है गलत कहते है पापा सब झूठी बाते है, आज देशभक्ति, इंसानियत, मानवतावादी बाते, दूसराे की मदद करने के विचार बस कहने मात्र ही रह गए है, पर पूजा ताे पैसा ही जाता है, बस पैसा है ताे सब पूछते है वरना इंसानियत खड़ी गरीबी आैर लाचारी का तमाशा बनता देखती है पापा, जान गई मैं आज"। बेटी की बात सुन पिता चुप रह चलता रहा कुछ ना बाेला आैर कहता भी क्या,
बेटी की बात सुन उसके सामने वह मंजर जाे आगया था जब डाक्टराें ने पैसे ना हाेने की वजह से एम्बुलेंस की सुविधा ना दी थी। बेटी की बाताे काे सुन एक पिता काे अपनी लाचारी से बहुत घृणा हुई, जिससे की पिता की आँखे भर आँई। आँसुओं की वजह से पिता की आँखाें के अागे का दृश्य धुंधला हाे गया। जिससे की रास्ते में पडा पत्थर पिता काे ना दिखा आैर वह उसके पाँव में आ लगा, ठाेकर खा लडखडा कर एक पिता, एक पती घुटनाे के बल गिर पड़ा।
पाँव में चाेट आ गई थी पर पत्नी काे उसने गिरने ना दिया। पत्नी काे गाेद में ले वह आदमी बेठ गया।
ये घड़ी उसके लिए माैत से भी बदतर थी, एक तरफ दर्द से दुखता पाँव था ताे एक तरफ गरीबी की मार से आई कमजोरी से चढ़ती साँसें। एक तरफ गाेद में वह जीवन सघंनी मृत पडी जिसने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थी, ताे दूसरी तरफ थी एक तेरह साल की बिन माँ की बेटी जिसकी राेती आँखें पूछ रही थी की पापा हमें भगवान् ने गरीब क्यू बनाया, क्यू गरीबो की लाेगाे की तरहा भगवान् भी नही सुनता। एक तरफ थी लाेगाे की नजरे जाे उसकी आेर घूर उसकी लाचारी का मजाक उड़ा रही थी ताे दूसरी आेर था उसका इंसानियत नाम के शब्द से उठा विश्वास जाे की उन लाेगाे काे देख उठा था जाे उसकी सहायता करने में समर्थ हाेने पर भी उसकी सहायता ना कर दर्शक बने पडे थे।
आदमी अंदर ही अंदर टूट चुका था पर दुपट्टे के पल्लू से आँखे पाैंछती बेटी आैर गाेद में माैत की नींद साेई पत्नी काे देख वह हिम्मत कर फिर उठा आैर चल दिया कई किलाेमीटर लम्बे रास्ते पर पत्नी काे काँधे ले कर। आैर करता भी क्या इंसानियत की माैत के मातम में बेठने से अच्छा उसने एक एक कदम अपने बल पर अपनी पत्नी काे मुक्ती धाम पहुंचाना उचित समझा।
वह चलता रहा लाेग देखते रहे काेई बीच में ना आया, आता भी क्यू वाे भला काेई फिल्म स्टार, क्रिकेटर, या बड़ा नेता थाेडी था जिसके लिए वह बिना मांगे सहायता काे भागते, वह ताे साधारण सा आदमी था उसकी सहायता से क्या फायदा।
जान चुका था वह आदमी के इंसानियत नाम का शब्द अब कहानियाें में ही जचता है।।।
असल जिंदगी में ताे हर जगाह बस गरीब ही पिसता आैर गरीब ही मरता है।।।
#हैरी_ठाकुर।।।।
Saturday, August 27, 2016
नमन तुझे ऐ मानव ....
फिर से कालाहांडी ने एक दर्दनाक मंज़र देखा
मानवता की छाती पे एक घुसा हुआ खंजर देखा
धन अभाव में लाश को ले जाने को वाहन नहीं दिया
साधनहीन की लाज बचाने कोई साधन नहीं दिया
नमन तुझे ऐ मानव तूने क्या साहस दिखलाया है
बीवी के शव को कंधे पर मीलों लेकर आया है
क्या होता है नारी का सम्मान बताया है तूने
भारत में रिश्तों का पावन मर्म दिखाया है तूने
जीवनसाथी से रिश्तों का नया अर्थ दिखला डाला
मर्द के कंधे क्या होते है दुनिया को बतला डाला
आज़ादी के सत्तर सालो बाद अगर ये होना है
अस्पताल से घर तक लाशों को कंधे पर ढोना है
सरकारों को कंधा देकर शमशानों तक ले जाओ
संसद के सारे विधान पे आग लगा कर आ जाओ
जो सरकारें मानव की पीढ़ा तक पहुँच न पाती है
इक दिन ऐसी सरकारों की खुद अर्थी उठ जाती है
सरकारी सिस्टम जब जब भी जनता को तड़पाता है
सारा सिस्टम इक दिन खुद भी तड़प तड़प मर जाता है
जगन्नाथ जब साथ खड़े हैं निर्बल भी तन जाते हैं
कोई साथ न आये तो वो खुद कंधा बन जाते हैं
कवि - मयंक शर्मा
बुरा न मानो तो ये भी बता दूँ
अमन बिक रहे है चमन बिक रहे है,
लाशो से लेकर कफ़न बिक रहे है ।
इस पापी जुल्मी पेट के कारण ,
हसीनो के नाजुक बदन बिक रहे है।
और बुरा ना मानो तो ये भी बता दूँ ,
कि संतो के जप तप भजन बिक रहे है।।
गरीबो की दुनिया में इंसान रोता,
अमीरों की दुनिया में भगवान रोता।
दरोगा दीवानों की बर्दी है बिकती,
गुंडों की गुंडा गर्दी है बिकती।
बुरा न मानो तो ये भी बता दूँ ,
कमीनो के हाथों धर्म बिक रहे है।।
रचनाकार :- राजपाल मीना (पीलोदा)
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’?
हमारी ब्रा के स्ट्रैप देखकर तुम्हारी
नसें क्यों तन जाती हैं ‘भाई’?
‘अरे! तुमने ब्रा ऐसे ही खुले में सूखने को डाल दी?’ तौलिये से ढंको इसे। ऐसा एक मां अपनी 13-14 साल की बेटी को उलाहने के अंदाज में कहती है।
‘तुम्हारी ब्रा का स्ट्रैप दिख रहा है’, कहते हुए एक लड़की अपनी सहेली के कुर्ते को आगे खींचकर ब्रा का स्ट्रैप ढंक देती है।
‘सुनो! किसी को बताना मत कि तुम्हें पीरियड्स शुरू हो गए हैं।’
‘ढंग से दुपट्टा लो, इसे गले में क्यों लपेट रखा है?’
‘लड़की की फोटो साड़ी में भेजिएगा।'
‘हमें अपने बेटे के लिए सुशील, गोरी, खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, घरेलू लड़की चाहिए।'
‘नकद कितना देंगे? बारातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।'
‘दिन भर घर में रहती हो। काम क्या करती हो तुम? बाहर जाकर कमाना पड़े तो पता चले।'
‘मैं नौकरी कर रहा हूं ना, तुम्हें बाहर खटने की क्या जरूरत? अच्छा, चलो ठीक है, घर में ब्यूटी पार्लर खोल लेना।'
‘बाहर काम करने का यह मतलब तो नहीं कि तुम घर की जिम्मेदारियां भूल जाओ। औरत होने का मतलब समझती हो तुम?’
‘जी, मैं अंकिता मिश्रा हूं। शादी से पहले अंकिता त्रिपाठी थी। यह है मेरा बेटा रजत मिश्रा।'
‘तुम थकी हुई हो तो मैं क्या करूं? मैं सेक्स नहीं करूंगा क्या?’
‘कैसी बीवी हो तुम? अपने पति को खुश नहीं कर पा रही हो? बिस्तर में भी मेरी ही चलेगी।’
‘तुम्हें ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई? वरजिन नहीं हो तुम?’
‘तुम बिस्तर में इतनी कंफर्टेबल कैसे हो? इससे पहले कितनों के साथ सोई हो?’
‘तुम क्यों प्रपोज करोगी उसे? लड़का है उसे फर्स्ट मूव लेने दो। तुम पहल करोगी तो तुम्हारी इमेज खराब होगी।'
‘नहीं-नहीं, लड़की की तो शादी करनी है। हां, पढ़ाई में अच्छी है तो क्या करें, शादी के लिए पैसे जुटाना ज्यादा जरूरी है। बेटे को बाहर भेजेंगे, थोड़ा शैतान है लेकिन सुधर जाएगा।’
‘इतनी रात को बॉयफ्रेंड के साथ घूमेगी तो रेप नहीं होगा?’
‘इतनी छोटी ड्रेस पहनेगी तो रेप नहीं होगा।'
‘सिगरेट-शराब सब पीती है, समझ ही गए होंगे कैसी लड़की है।'
‘पहले जल्दी शादी हो जाती थी, इसलिए रेप नहीं होते थे।'
‘लड़के हैं, गलती हो जाती है।’
‘फेमिनिजम के नाम पर अश्लीलता फैला रखी है। 10 लोगों के साथ सेक्स करना और बिकीनी पहनना ही महिला सशक्तीकरण है क्या?’
‘मेट्रो में अलग कोच मिल तो गया भई! अब कितना सशक्तीकरण चाहिए?’
‘क्रिस गेल ने तो अकेले सभी बोलर्स का ‘रेप’ कर दिया।’
लंबी लिस्ट हो गई ना? इरिटेट हो रहे हैं आप। सच कहूं तो मैं भी इरिटेट हो चुकी हूं यह सुनकर कि मैं ‘देश की बेटी’, ‘घर की इज्जत’, माँ और ‘देवी’ हूँ। नहीं हूँ मैं ये सब। मैं इंसान हूँ आपकी तरह। मेरे शरीर के कुछ अंग आपसे अलग हैं इसलिए मैं औरत हूं। बस, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। सैनिटरी नैपकिन देखकर शर्म आती है आपको? इतने शर्मीले होते आप तो इतने यौन हमले क्यों होते हम पर?
ओह! ब्रा और पैंटी देखकर भी शर्मा जाते हैं आप या इन्हें देखकर आपकी सेक्शुअल डिजायर्स जग जाती हैं, आप बेकाबू हो जाते हैं और रेप कर देते हैं।
अच्छा, मेरी टांगें देखकर आप बेकाबू हो गए। आप उस बच्ची के नन्हे-नन्हे पैर देखकर भी बेकाबू हो गए। उस बुजुर्ग महिला के लड़खड़ाकर चलते हुए पैरों ने भी आपको बेकाबू कर दिया। अब इसमें भला आपकी क्या गलती! कोई ऐसे अंग-प्रदर्शन करेगा तो आपका बेकाबू होना लाजमी है। यह बात और है कि आपको बनियान और लुंगी में घूमते देख महिलाएँ बेकाबू नहीं होतीं। लेकिन आप तो कह रहे थे कि स्त्री की कामेच्छा किसी से तृप्त ही नहीं हो सकती? वैसे कामेच्छा होने में और अपनी कामेच्छा को किसी पर जबरन थोपने में अंतर तो समझते होंगे आप?
हाँ, मैं सिगरेट पीती हूँ… कोई प्रॉब्लम?
मेरे कुछ साथी महिलाओं द्वारा आजादी की मांग को लेकर काफी ‘चिंतित’ नजर आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि महिलाएं ‘स्वतंत्रता’ और ‘स्वच्छंदता’ में अंतर नहीं कर पा रही हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं पुरुष बनने की कोशिश कर रही हैं और इससे परिवार टूट रहे हैं, ‘भारतीय अस्मिता’ नष्ट हो रही है। वे कहते हैं कि नारीवाद की जरूरतमंद औरतों से कोई वास्ता ही नहीं है। वे कहते हैं सीता और द्रौपदी को आदर्श बनाइए। कौन सा आदर्श ग्रहण करें हम सीता और द्रौपदी से? या फिर अहिल्या से?
छल इंद्र करें और पत्थर अहिल्या बने, फिर वापस अपना शरीर पाने के लिए राम के पैरों के धूल की बाट जोहे। कोई मुझे किडनैप करके के ले जाए और फिर मेरा पति यह जांच करे कि कहीं मैं ‘अपवित्र’ तो नहीं हो गई। और फिर वही पति मुझे प्रेग्नेंसी की हाल में जंगल में छोड़ आए, फिर भी मैं उसे पूजती रहूं। या फिर मैं पांच पतियों की बीवी बनूं। एक-एक साल तक उनके साथ रहूं और फिर हर साल अपनी वर्जिनिटी ‘रिन्यू’ कराती रहूं ताकि मेरे पति खुश रहें। यही आदर्श सिखाना चाहते हैं आप हमें?
जो लड़की शर्माई नहीं, वह हो गई चरित्रहीन…
चलिए अब कपड़ों की बात करते हैं। आप एक स्टैंडर्ड ‘ऐंटी रेप ड्रेस’ तय कर दीजिए लेकिन आपको सुनिश्चित करना होगा कि फिर हम पर यौन हमले नहीं होंगे। बुरा लग रहा होगा आपको? मैं पुरुषों को जनरलाइज कर रही हूँ । हर पुरुष ऐसा नहीं होता। बिल्कुल ठीक कहा आपने। जब आप सब एक जैसे नहीं हैं तो हमें एक ढांचे में ढालने की कोशिश क्यों करते हैं? आपके हिसाब से दो तरह की लड़कियां होती हैं, एक वे जो रिचार्ज के लिए लड़कों का ‘इस्तेमाल’ करती हैं और एक वे जो ‘स्त्रियोचित’ गुणों से भरपूर होती हैं यानी सीता, द्रौपदी टाइप। बीच का तो कोई शेड ही नहीं है, है ना?
क्या साड़ी पहनकर ओलिंपिक में भाग लें?
महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आजादी बहुत ही बुनियादी चीजें हैं। ये बुनियादी हक भी उन्हें आपकी दया की भीख में नहीं मिले हैं। उन्हें लड़ना पड़ा है खुद के लिए और उनका साथ दिया है ईश्वर चंद्र विद्यासागर, राजा राम मोहन राय और ज्योतिबा फुले जैसे पुरुषों ने।
सच बताइए, आप डरते हैं ना औरतों को इस तरह बेफिक्र होकर जीते देखकर? आप बर्दाश्त नहीं कर पाते ना कि कोई महिला बिस्तर में अपनी शर्तें कैसे रख सकती है?फेमिनिज़्म से आपका इगो हर्ट होता है जब महिला खुद को आपसे कमतर नहीं समझती। फिर आप उसे सौम्यता और मातृत्व जैसे गुणों का हवाला देकर बेवकूफ बनाने की कोशिश करने लगते हैं। सौम्यता और मातृत्व बेशक श्रेष्ठ गुण में आते हैं। तो आप भी इन्हें अपनाइए ना जनाब, क्यों अकेले महिलाओं पर इसे थोपना चाहते हैं? क्या कहा? मर्द को दर्द नहीं होता? कम ऑन। आप जैसे लोग ही किसी सरल और कोमल स्वभाव वाले पुरुष को देखकर उसे ‘गे’ और ‘छक्का’ कहकर मजाक उड़ाते हैं। वैसे गे या ‘छक्का’ होने में क्या बुराई है? जो आपसे अलग हैं वह आपसे कमतर? क्या बकवास लॉजिक है। सानिया मिर्जा की स्कर्ट पर आपत्ति जताने वालों से और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं! और हाँ, साक्षी मलिक और पीवी सिंधु की जीत का जश्न मना रहे हैं या नहीं?
*
सिंधुवासिनी
Thursday, August 25, 2016
जन्माष्टमी
#जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर पेश है नज़ीर अकबराबादी द्वारा लिखी गयी श्री कृष्ण की जीवनगाथा पर ये कविता
**
सिफ्तो सना में सृष्टि रचैया की क्या लिखूं।
औसाफी खूबी ब्रज के बसैया की क्या लिखूं।
पदायश अब में कुल के करैया की क्या लिखूं।
कुछ मदह में उस सुध के लिवैया की क्या लिखूं।
तारीफ कहो कृष्ण कन्हैया की क्या लिखूं॥
श्री वेद व्यास जी ने बनाये कई पुरान।
लिखने में तो भी आया नहीं कृष्ण का बयान।
लिख-लिख के थक रहे हैं हर एक कर नविश्त ख्वान।
कहती है जो कलम मेरी वह है जली ज़बान॥ तारी.
आ द्वारका से द्रोपदी काा चीर बढ़ाया।
बैकुंठ से आ ग्राह से गजराज छुड़ाया।
प्रहलाद को जलने से अगन के बीच बचाया।
मेवा को त्याग साग विदुर के यहाँ खाया॥ तारी.
परबत रखा है उँगली पै जों रुई का गाला।
संग ग्वाल बाल लेके खड़े नन्द के लाला।
बंसी बजाते नृत्य करते भार को टाला।
दिन सात में इन्दर का सभी गर्व निकाला॥ तारी.
गायें चराके ओवं थे संग ग्वाल बाल से।
हर तरफ आग देख कहैं सब गुपाल से॥
अब के हमें बचाओ यहाँ किसी चाल से।
आँखें मिचा बचाया उन्हें अग्नि जाल से॥ तारी.
अब क्या कहूँ मैं तुमसे उनकी लतीफ बात।
पीतम्बर ओढ़ लेट रहे वे छुपा के गात।
भृगुजी ने वों ही आन के छाती पै मारी लात।
जब पाँव दबाने लगे श्री कृष्ण अपने हाथ॥ तारी.
क्या क्या बयान हो सकें जो जो किये हैं काम।
दो पेड़ थे वहाँ खड़े जो नंद जी के धाम।
और दही डाल हाथ बँधाए उन्हों के काम।
ऊखल से बाँध हाथ उन्हें नाक भेजा शाम॥ तारी.
फरजंद गुरू के सबी एक आन में लाए।
फिर तीनों लोक मुँह में जसोदा को दिखाए।
छोनी अठारह रंग मंे जो भारत के जुझाए।
तहाँ अंडे भारथी के घंटा से बचाए॥ तारी.
सुरजन सा दुष्ट जान के जुन्नार से छोड़ा।
एक आन में जिन मार लिया केसरी घोड़ा।
आंधी में जो तिनावर्त को तिनका सा तोड़ा।
और नाम धराया है जो फिर आप भगोड़ा॥ तारी.
एक दम में किये दूर सुदामा के दरिद्दर।
कंचन के सभी कर दिये एक आन में मंदर।
जो चाहे कोई करता हरी आप विसंभर।
फिर आप गए दान को बलि राजा के दर पर॥ तारी.
सोलह हजार कैद से छुटवाई हैं रानी।
दिन रात कहा करतीं थीं वे कृष्ण कहानी।
रथवान हो अर्जुन के कही गोष्ठ पुरानी।
फिर अपने बचन सेती भए दधि के जो दानी॥ तारी.
कहता नज़ीर तेरे जो दासों का दास है।
दिन रात उसको तेरे ही चरनों की आस है।
ना समुझे एक तेरे ही से नित विलास है।
गुन गाए से तेरा हिये हरदम हुलास है।
तारीफ कहो कृष्ण कन्हैया की क्या लिखूँ॥
Wednesday, August 24, 2016
Tuesday, August 23, 2016
Monday, August 22, 2016
Friday, August 19, 2016
Tuesday, August 16, 2016
अब तक नहीं आया....
मोहब्बत तुमसे यूँ होगी यकीन अब तक नहीं आया....
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इनायत तुमसे यूँ होगी यकीन अब तक नहीं आया....
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कहीं बिखरे थे सदियों से समेटा फिर से तुमने....
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हुई दस्तक है दिल में यकीन अब तक नहीं आया....
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हमारी आँखें जागी थी नहीं सोई थी बरसों से....
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अभी आये सुकून लेकर यकीन अब तक नहीं आया...
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Monday, August 15, 2016
जय हिंद जय भारत
तसव्वुर में सही लेकिन मैं गुलदस्ता बनाता हूँ...,
सज़ाएँ दीजिए मैं आपका चेहरा बनाता हूँ ...!
मेरी तामीर के क़िस्से कहीं लिक्खे ना जाएंगे,
मैं जंगल से गुज़रने के लिए रस्ता बनाता हूँ !
ना जन्नत मैंने देखी है ना जन्नत की तवक़्क़ो है
मगर मैं ख़्वाब में इस मुल्क का नक़्शा बनाता हूँ...
मुझे अपनी वफ़ादारी पे कोई शक नहीं होता ..
मैं खून-ए-दिल मिला देता हूँ जब झंडा बनाता हूँ ।
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामना
जय हिंद जय भारत
वंदे मातरम
Saturday, August 13, 2016
Friday, August 12, 2016
हद कर दी इसने😀 :
एक 👷लड़के को एक लड़की से
प्यार हो गया..
:
लेकिन 💁लड़की ने उसे ठुकरा
दिया..
:
👷लड़के ने कहा
"तुम 10 दिन के अंदर मेरी
मोहब्बत का
इकरार करोगी..
:
:
और 💁लड़का दिन रात
बारिश मे
धूप मेँ
उसके घर के सामने खड़ा रहा..
:
9 दिन बाद 💁लड़की को
सच मे लड़के के प्यार का
अहसास हो गया और उसने
सोचा
सुबह जाकर प्यार का
इकरार करूंगी,
:
लेकिन जब वो सुबह वहां
पर गयी तो लड़का उसे
वहां नही मिला,
और एक कागज मिला जिस
पर लिखा था
"तेरे चक्कर मे तेरी बहन
Set हो गयी है"
:
:
Sorry 💁साली साहिबा..😊😊
Monday, August 8, 2016
कभी हँस भी न सका......
देखकर उनकी आँखो में अपने नाम की #बेपरवाही,
दिल रोया तो नहीं मगर फिर कभी हँस भी न सका !!
Tuesday, August 2, 2016
सर्दी के मौसम मे ........
😜😝😣😁 रजाई के लिये सर्दी के मौसम मे एक स्टूडैन्ट हॉस्टल से अपने पापा को खत लिखता है ।
लेकिन उसके कुछ शरारती दोस्त रजाई की जगह लुगाई लिख देते है ।
3 इडियट फ़िल्म की तरह।
और
जब पापा खत पडते है तो.......
आदरणीय पापाजी !
चरण स्पर्श,
मैं यहां ठीक हूँ और आशा करता हू कि आप लोग सब अच्छे से होगे।
आगे समाचार यह है कि मेरी लुगाई 🙎पुरानी और बेकार हो गई है ।
और यहॉ सर्दी अधिक पड रही है ।
अभी दोस्तो की लुगाइयों से काम चल रहा था लेकिन सर्दी अधिक पडने से वे भी अपनी लुगाई देने मे आना कानी करते है ।
मेरे लिये एक लुगाई का इंतजाम कर दो ।
नई ना ला सको तो बडे भैया की लुगाई भेज दो ।
बडे भैया की ना मिले तो मझले भैया की लुगाई भेज दो ।
सर्दी मे बुरा हाल है ।
दो भाईयों मे से किसी एक की लुगाई जरूर भेज दो।
दोनों मे से किसी की भी न भेज सको तो पैसे भेज दो मैं यहॉ किराये कि लुगाई ले लूंगा ।
आपका पुत्र
के.पी.
उसका बाप और भाई➖घर से डंडे लेकर निकले हैं।
सोच सकते हैं क्या हाल होने वाला है उसका।
क्यों की हर 1 फ्रेंड कमीना होता है।
मिस यू ऑल फ्रेंड
😣😝😜😁
Monday, August 1, 2016
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